बाहरी प्रतिस्पर्धात्मक परिस्थितियों का सामना करने के लिए उपलब्धि प्राप्त करना अति आवश्यक है । इसके लिए अनेक प्रमाप निर्धारित करने पड़ते हैं । उपलब्धि किसी एक साधन से सम्भव नहीं है, इसके लिए अनेक तत्वों को ध्यान में रखना पड़ता है, व्यक्तिगत रूप से तथा सामूहिक रूप से विचार करना पड़ता है ।
श्रेष्ठ बनने के लिए इच्छा, प्रमाणकों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रयत्न करना आवश्यक है । समाधान करने के लिए अपने-अपने उत्तरदायित्व को पूरा करना पड़ता है ।
आधुनिक प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए उद्देश्यों को इस प्रकार लेकर चलना पड़ता है कि उनका समाधान न तो ज्यादा कठिन हो और न सरल उद्देश्यों को पूरा करने हेतु तथा उपलब्धि को प्राप्त करने के लिए इस प्रकार का विश्वास उत्पन्न करना पड़ता है कि कमियों को दूर किया जा सके ।
उपलब्धि प्राप्त करने के लिए उन्हें कर्म पर विश्वास रखना पड़ता है न कि भाग्य पर । भाग्य के भरोसे छोड़कर किसी भी प्रकार की उपलब्धि नहीं की जा सकती । उनका मुख्य आकर्षण उपलब्धि की तरफ होता है, धन की तरफ नहीं । धन तो उनके लिए उपलब्धि का केवल एक साधन मात्र होता है । उन्हें आवश्यकता होती है कार्य में स्वतन्त्रता एवं नियन्त्रण की ।
मैक्लेलैण्ड ने उपलब्धि के लिए आवश्यकता को महत्वपूर्ण माना है । उपक्रम ही आर्थिक विकास के मुख्य आधार होते हैं । वे देश जो कि उपलब्धि के क्षेत्र में आगे रहे हैं- जापान, पश्चिमी यूरोप तथा यू. एस. ए. हैं ।
मैक्लेलैण्ड ने आर्थिक विकास के कारणों का महत्वपूर्ण अध्ययन किया तथा ऐसे कारणों का पता लगाया जो कि उपलब्धि तथा आर्थिक विकास के लिए उत्तरदायी हैं । इस क्षेत्र में एशिया, अफ्रीका तथा लेटिन अमरीका विकसित देश हैं ।

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